सफर

ये कैसा सफर हैं चलती ही जाती हु।
ये कैसा सफर
आगे की और,
रुकने का नाम नहीं लेती
सब कुछ पीछे छोड़त
हुई जाती हु।
ये कैसा सफर
कुछ याद आता हैं तो बस
अधूरे ख्वाब
पिता का आँगन
अपनों का प्यार
दोस्तों की मीठी यादे,
एकअनकही दासता
वो गुनगुनी धुप।
फूलो की मुस्कान