मै ठहर जाना चाहती हूँ।
मै ठहर जाना चाहती हूँ।
समय चलता रहता निरंतर
तारीखे बदलती रहती हैं।
घड़ी की सुइयों की तरह कुछ
भी रुकता नही।
हर बार ख्वाब टूटते हैं
उम्मीदे टूटती हैं
हौंसला रख हर बार संभलती हूँ।
फिर टूट कर बिखरती हूँ मैं
कही खो जाती हूँ इस भीड़ में,
हर बार खुद को खोजती हूँ मैं
खुद के ही सवालों में उलझ कर
रह जाती हूँ मैं कभी
न जाने किसके इंतज़ार में
पीछे रह जाती हूँ।
न मेरे शब्द मिलते हैं न मायने
समझ पाती हूँ।
थक चूंकि हूँ इन शब्दों में खुद को
ढूंढते ढूंढ़ते।
बस अब मैं ठहर जाना चाहती हूँ।
फूलो सी मुस्कान बनकर मिल
जाना चाहती हूँ इन फिज़ाओ में
हा गुनगुनाना चाहती हुँ
गीत कोई नया सा