आधी आबादी की उपेक्षा क्यूँ
महिलाये हमारे देश की आधी आबादी हैं। संस्कृति का आइना हैं उन्हें पुरुष वर्ग द्वारा उपेक्षित क्यूँ किया जाता हैं। नारी देश के भावी नागरिको की विधाता हैं उनकी प्रथम और परम गुरु हैंजो जनम भर अपने आपको मिटाकर दुसरो को बनाती रहती हैं।
महिलाओ की पुरुषो पर कैसे आर्थिक आत्मनिर्भरता कम की जाए। इन मसलो को जब तक संशोधित नहीं किया जाता जब तक गैर बराबरी के व्यवहार की सम्भावना बनी रहेगी।
सम्पति के अधिकार व् क़ानूनी तौर पर भले ही उन्हें समान अधिकार मिले हो अगर वास्तविक जीवन में उसे कैसे सुनिश्चित किया जाये इसके बारे में सोचना होगा। बहुत से उदारहण सामने आते हैं अपनी पैतृक सम्पति में हक़ मांगने वाले बेटियों को अपने ही भाइयो के हाथो कलंकित किया जाता हैं। ताकि वो अपना हक़ मांगने की हिम्मत न कर सके। उनके लिए अधिकाधिक अवसरों का सृजन कैसे हो यह देखना होगा। यौन अत्याचार की शिकार स्त्री की स्थिति वास्तविक मौत से बदतर हो जाती हैं।
महिलाओ के खिलाफ हिंसा महज क़ानूनी तथा प्रशासनिक मामला नहीं हैं। इसके लिए कई बातो पर फैसले लेने होंगे। प्रशासन के हर स्तर पर महिलाओ की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। ताजनीति में पर्याप्त महत्व देना होगा। सार्वजानिक दायरे में महिलाओ की अधिकाधिक उपस्थति पुरुष वर्चस्व को तोड़ेगी। तथा उनके खिलाफ हिंसा की सम्भावना काम होगी। महिलाओ की उपेक्षा से लोकतंता कमजोर होगा। महान कवियत्री और साहित्यकार महादेवी वर्मा का कहना हैं कि उन्हें इस बात का क्षोभ हैं कि नारी ने अपनी शक्ति को कभी समझने का प्रयास नहीं किया। वह खुद अपनी वेदना के कारणो को नहीं जानती। न अपने समक्ष कष्ट के प्रतिकार की भावना से शक्तियों का बोध नहीं होता। बोध होने पर ये बंदिनी बनाने वाली श्रंखलाओ को स्वय तोड़ देगी। उन्होंने नारी को अहिंसा प्रिय बताया। वे नारी की कोमलता जनित दुर्बलता को अभिशाप मानती हैं।
नारी पुरुष की छाया मात्र नहीं।
महादेवी वर्मा का नारी चिंतन तथस्ट और निष्पक्ष हैं। वे नारी जीवन कि विडंबनाओं के लिए पुरुषो को ही दोषी नहीं ठहराती बल्कि नारी को भी सामान रूप से उत्तरदायी ठहराती हैं। वे कहती हैं कि समस्या का समाधान समस्या के ज्ञान पर निर्भर करता हैं और यह ज्ञान ज्ञाता की अपेक्षा रखता हैं। उन्होंने लिखा एक और तो वो देवी के प्रतिष्ठापूर्वक पद पर शोभित हैं दूसरी और परबस भी। महादेवी वर्मा ने समाज की पूर्णता हेतु पुरुष एवं नारी के स्वतंत्र व्यक्तित्व को आव्यशक माना। उनकी दृष्टि में नारी पुरुष की छाया मात्र ंमानना नारी जाती के लिए अभिशाप हैं।
उन्होंने लिखा कि महाभारत के समय की कितनी ही स्त्रियाँ अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व तथा कर्त्तव्य बुद्धि के लिए स्मरणीय रहेगी। नारी पुरुष की संगिनी हैं। छाया मात्र नहीं। वे भारतीय समाज में नारी की दयनीय स्थति के लिए नारी के अर्थहीन अनुसरण को जिम्मेदार ठहराती हैं। दोनों की तुलना करते हुए वे कहती हैं कि पुरुष न्याय हैं स्त्री दया। पुरुष शुष्क कर्त्तव्य हैं स्त्री सरस सहानुभूति। लेकिन नारी अब कमजोर नहीं शक्ति हैं सम्बल हैं वो किसी की दया की मोहताज नहीं।
नारी हु मै
नव निर्माण करुँगी।
आदि शक्ति हु मै।
सृष्टि की
मिझसे तुम खिलवाड़ न करना।
रक्षक हु मेँ सरे जग की
मुझसे तुम खिलवाड़ न करना।
सपनो को साकार करुँगी।
समाज संस्कृति का मान रखूंगी